hindi kahaniya
बड़े होने पर श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बने. गरीब सुदामा एक झोंपड़ी में रहते थे.
एक दिन उनकें मन में विचार आया, उनहोंने सोचा कि क्यों न वे अपने शिष्यों में ही योग्य वर की तलाश करें.
कुरज की विनती सुनकर ग्वाले को दया आ गईं, उसने खेत के मालिक से कहा- छांटकर एक अच्छी सी गाय लेलो और इस कुरज को छोड़ दो. पर खेत का मालिक अत्यंत लोभी था.
दूसरी तरफ दानवों ने शर्त का पालन किया, लड्डू उछालते रहे, उन्हें पाने के लिए लपकते रहे, न खुद खाए न दूसरों को खाने दिए. लड्डू तो बिगड़े ही, पेट भी न भरा.
कक्षा चुप रही
क्योंकि परीक्षा के बाद उन्हें सभी वस्तुएं उनकें मालिक को वापिस करनी थी.
पहला- मेरा मन तो मीठी चीज खाने को कर रहा हैं.
झट स्वय को नियंत्रित किया और सोचने के लिए अपनी तलवार वापिस खिची तो पास ही रखे बर्तन से टकरा गईं, बर्तन की आवाज सुनते ही उसकी पत्नी की नीद खुल गईं.
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उमा की शरारतों का वह अपनी मेहनत से जवाब देती रही, जैसे ही वह घौसला गिराती वह नया तैयार कर देती थी.
.... कि......?? ..... कहीं मेरे दिल में रहने वाली लड़की काली न पड़ जाए...!!! ...
मैंने उससे कहा- हम अपने स्वामी भरासुक के पास आहार के लिए जा रहे हैं.
तीसरा- पर मुझे तो प्यास बुझाने के लिए कुछ चाहिए.
लड़का शांत स्वर में कहने लगा- सेठजी कोई बात नही, बस यूँ ही कर रहा था.